सोमवार, 31 अगस्त 2009
उर्जात्मक ज्योतिष
पढने की एक आदत ने ज्योतिष की पुस्तकों को भी पढने पर मजबूर कर दिया था.विज्ञान का विद्यार्थी होने से मेरी तर्क बुद्धि ने ज्योतिष को वज्ञान के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया.जब दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया तो भारतीय दर्शन के छ मुख्य अंगों में शिक्षा, व्याकरण,कल्प,निरुक्त,छंद और ज्योतिष में इसको शामिल पाकर हैरानी हुई..थोडा नजरिया बदला.एकबार मेरे गुरुदेव दुर्गाशंकर जी ओझा से इस विषय में चर्चा हुई तो उन्होंने जो बताया वह इस तरह से था-
ज्योतिष वस्तुत स्पेस टाइम सिद्धांत के चौथे आयाम को जानने की विधा है.वास्तव में किसी स्थान विशेष पर समय रेखा के तीन हिस्से भूत वर्तमान और भविष्य होते है...जिसमे भविष्य अज्ञात होता है और भूत अपरिवर्तनीय.ज्योतिष की ग्रह गतिक गणनाओं में पृथिवी के सन्दर्भ में समय के बिंदु निर्धारित किये गए है जो पूरी तरह से वैज्ञानिक गणनाओं पर आधारित है.विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार भविष्य अनिश्चित होता है..मगर उसके मोटे क्षेत्रों के बारे में भविष्य वाणी की जा सकती है जैसे १०५ वर्ष की आयु तक ९९ प्रतिशत मानव जीवित नहीं रहेंगे...१ अरब साल बाद पृथ्वी पर जीवन नहीं रहेगा इत्यादि..पर जब किसी घटना की समय बिंदु पर सटीक भविष्यवाणी की बात आती है तो स्थिति अस्पष्ट ही रहती है.हम बाढ़ सूखे युद्ध आतंकवाद इत्यादि की घोषणा तो ज्योतिष से करलेते है पर सही सही यह नहीं बता पाते है की ठीक कब और कहाँ क्या घटना घटित होगी.
ऐसा इसलिए भी है कि ला आफ यूनिवर्स के अनुसार भविष्य परिवर्तनीय है...जैसे अगर हम ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रण में नहीं लाते है तो विनाश कारी परिणाम होंगे और अगर हम इस पर नियन्त्रण कर लेते है तो विनाश कारी परिणाम नहीं होंगे.यही बात घटना विशेष अथवा व्यक्तिविशेष पर लागू होती है.अर्थात ज्योतिष से की गई भविष्यवाणी पुरुषार्थ से बदली जा सकती है.कालिदास का उदाहरण स्पष्ट है.
फिर प्रश्न उठता है कि ज्योतिष की क्या आवश्यकता है?जब पुरुषार्थ ही मायने रखता है तो अन्य बातों का क्या अर्थ है.इस बात को जानने से पहले ज्योतिष के ऊर्जा सिद्धांत को समझना पड़ता है.वास्तव में कुंडली में ग्रहों के उच्च नीच स्वग्रही मित्र राशिः शत्रु राशि में होने के अत्यंत भ्रामक और भयानक अर्थ प्रस्तुत कथित ज्योतिषियों ने अपनी दुकानदारी चलाने के लिए प्रस्तुत किये है..वास्तव में उच्च और निम्न ग्रहों की ऊर्जा स्थितियां है..जैसे इलेक्ट्रिसिटी के दो सिरे +एवं -होते है,चुम्बक के + व - दो ध्रुव होते है वैसे ही ग्रहों की उच्च और निम्न दो ऊर्जा स्थितियां होती है.जैसे विद्युत का प्रवाह +से - की ओर होता है वैसे ही कुंडली की ऊर्जा का प्रवाह ग्रहों की दृष्टि युति स्वक्षेत्री, मित्र क्षेत्री शत्रु क्षेत्री के आधार पर होता है.इस तरह से अगर कोई ग्रह अगर निम्न होकर किसी सबल ग्रह से द्रष्ट अथवा युति में नहीं हो तो उसके परिणाम बदले नहीं जासकते है.इस प्रकार ग्रहों की उर्जा प्रवाह रेखाएं यह तय करती है कि भविष्य के परिणाम किस हद तक बदले जा सकते है.
इस प्रकार ज्योतिष की एक शाखा जिसमे फलित कुंडली में ग्रहों के उर्जा प्रवाह के आधार पर निकाला जाए को उर्जात्मक ज्योतिष कहते है.उर्जात्मक ज्योतिष के सिद्धांतो के आधार पर परिणाम ज्यादा सही और उपयोगी हो सकते है.
मैं ज्योतिष के इस ब्लॉग में उर्जात्मक ज्योतिष सिद्धांतो के आधार पर कुछ प्रयोग करने के प्रयास करना चाहता हूँ.अगर आप अपनी किसी जिज्ञासा पर चर्चा करना चाहते है तो अपना नाम ,जन्म स्थान,जन्म तिथि,जन्म समय,और प्रश्न इ मेल करें.साथ में यह भी लिखे कि आप के प्रश्न पर सार्वजनिक चर्चा ब्लॉग पर की जाए या नहीं.मैं पूरा प्रयास करूंगा कि सभी लोगों के प्रश्नों के उत्तर उन्हें मेल करुँ पर अधिक प्रश्न होने की वजह से ऐसा ना कर पाऊं तो सुधि पाठक मुझे क्षमा करें.
साथ ही यह ब्लॉग सकारात्मक चर्चा के लिए है...मान्यता वैज्ञानिकता,बहस बाजी इत्यादि के लिए कृपया अपना और मेरा समय खराब न करे.आपको परिणाम उपयोगी लगे तो इसमें भाग ले अन्यथा आप इससे किनारा कर सकते है.
प्रकाश
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रोचक लगी यह जानकारी
जवाब देंहटाएंAapke anya lekhon ki prateechha rahegee.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
great analysis.... i will send u my date and time of birth....plz email my predictions....thnks
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो ब्लॉगजगत में आपके नए ब्लॉग का हार्दिक स्वागत |
जवाब देंहटाएंआपने ज्योतिष की परिभाषा सही तरीके से समझाई है जो लोग ज्योतिष को नासमझी के चलते गरियाते रहते है | आपकी पोस्ट उनके दिमाग से ज्योतिष के विषय में गलत भ्रांतियों का निराकरण करने में सहायक होगी |
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपाखीजी, मुझे आपकी दृष्टि सुलझी हुई और परिपक्व लगती है . आमतौर पर ज्योतिष के गहन जिज्ञासु उसके अवैज्ञानिक पक्ष को देर-सवेर नकार ही देते हैं, ये अलग बात है कि उसे संतुलित करने के लिए, उसकी शास्त्रीय गरिमा को पुनर्स्थापित करने हेतु कुछ नए शोध भी करें . मैं आप को विवेचना के लिए अपनी स्वयं की जानकारी दे रहा हूँ , ज़्यादा से ज़्यादा सच का सामना हो जाएगा.
जवाब देंहटाएंनाम राजेश्वर वशिष्ठ जन्म तिथि 30 मार्च, 1958
स्थान भिवानी हरियाणा समय 15.05 ( दोपहर बाद 03 बज कर 05 मिनट )
प्रश्न भारतीय धर्म-दर्शन के प्रवक्ता प्रचारक के रूप में सफलता कब मिलेगी ? कब तक अरुचिकर नौकरी को ढोना होगा?
aap ke Pratibha CHAKIT kar dhanaiwali hai...sach mai..or aapka time managment bhi kamal hai..aap ko bahut-bahut shadhubad or subhakhamnai...
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