शनिवार, 19 सितंबर 2009

अपना अपना समयाकाश

अक्सर ज्योतिष को विज्ञानं मानने और न मानने पर जब तर्क दिए जाते है तो दोनों पक्ष पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो कर अपनी स्थापित धारणाओं के परे कुछ भी सुनना पसंद नहीं करते है.और विज्ञान के मूल अर्थ से परे रहकर वैज्ञानिकता पर चर्चा करने लगते है.एक पक्ष ज्योतिष को विज्ञान मानते हुए विज्ञान को विज्ञान मानने से इनकार करने लगता है तो दूसरा पक्ष ज्योतिष पर बात करने को भी समय खराब करना मानकर उसके तथ्यों पर वैज्ञानिक विचारविमर्श की आवश्यकता को नकार देता है.
मेरे विचार से ज्योतिष एक विद्या है.जिसकी खगोलीय गणनाओं में सटीक वैज्ञानिकता है...आज से दो हजार वर्ष पूर्व भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस सटीकता से खगोलीय गणनाएं की वह आज के कम्पुटर युग के समकक्ष है.हजारो वर्षो से मानव की भविष्य जानने की उत्कट इच्छा के चलते उन तारामंडल और ग्रह स्थितियों के साथ जीवन के परिणामों को जोड़ने प्रयास करते हुए फलित ज्योतिष के सिद्धांतो का निर्माण किया गया.प्रयोग प्रेक्षण और निष्कर्ष के आधार पर मूलभूत बाते तय की गयी.और शायद कहीं कहीं इस प्रकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचलन का आरम्भ हुआ...और कई भ्रांतिया फलित ज्योतिष में समाविष्ट होने लगी.
मेरे विचार से जितने भी सामाजिक विज्ञान है उनके वेरिएबल्स अधिक होने से उनमे सही कार्य कारण सम्बन्ध स्थापित करना कठिन होता है.लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके वैज्ञानिक आधार की खोज रोक दी जावे.विज्ञान भी अपने सिद्धांतो पर बरसो के प्रयोगों और पीढियों के प्रयासों से पहुंचा है...वह समय भी आया कि केप्लर और गेलिलियो को अपने सही सिद्धन्तो की कीमत चुकानी पड़ी थी...पर किसी भी विज्ञान का प्रमुख आधार होता है.उसकी स्थापित या नई अवधारणाओं का वस्तुनिष्ठ परीक्षण हो..और इन आधारों पर कार्य कारण सम्बन्ध की स्थापना के लिए तथ्यों के आधार पर नियम स्थापित किये जाए...पर पहले से इसे न तो दिव्य शास्त्र माना जाए और न ही दकियानूसी अंधविश्वास.
कई प्रश्न पाठको ने मेल के जरिये या फोन पर मुझे किये है..मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं स्वयम फलित ज्योतिष को न तो अविज्ञान मान कर चलता हूँ न ही इसे स्थापित विज्ञान समझ कर चलना चाहता हूँ....टाइम स्पेस की दीर्घ समय रेखा पर हजारो पीढियों की भविष्य जानने की उत्कंठा में संग्रह किये अनुभवों के तथ्य अगर बार बार पुष्ट हों तो उन्हें किन वैज्ञानिक सिद्धांतो पर विवेचित किया जाना चाहिए बस,उनकी तलाश में कुछ कदम चलना चाहता हूँ.अगर फलित शत प्रतिशत सही हों तो उसे विज्ञान माना जाना चाहिए...अगर साठ प्रतिशत से अधिक सही हों तो उसमे वैज्ञानिक तथ्यों को खोजने के प्रयास किये जाने चाहिए और अगर सामान्य प्रायिकता औसत से कम सही हो तो हमें इस विज्ञान मानने से साफ़ इनकार कर देना चाहिए.
मेरे अनुभव से फलित सत्तर प्रतिशत तक सही रहा है...तो मैंने इसमें वैज्ञानिक सिद्धांत खोजने के प्रयास किये है.और कभी निराश नहीं हुआ हूँ.
जब मनोविज्ञान में अवचेतन मन को अभी समझा नहीं जा सका है तो शायद परामनोविज्ञान अभी दूर की कौडी है.यह वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव मस्तिष्क में अरबों न्युरोंस है...और हम अपने दिमाग का बहुत छोटा हिस्सा ही उपयोग में ले पारहे है...पर नब्बे प्रतिशत अवचेतन के बारे में कोई जानकारी नहीं है.पर आर्श्चय जनक तथ्य यह है कि हम जितना मानव मस्तिष्क के बारे में खोज कर पाए है ठीक वही अनुपात में ब्रह्मांड की खोज कर पाए है.मानव की वैज्ञानिक खोजों के इतिहास में मस्तिष्क और ब्रह्मांड के रहस्य एक साथ अनावृत हो रहे है.शायद पिंड और ब्रह्मांड में यह अनूठा साम्य मानव की अनुसंधान और खोजों में बहुत कुछ करने की प्रेरणा देता रहेगा.
मैं इन प्रश्नों के उत्तर खोजते रहना चाहूँगा...और जो खोज पाऊं उसे दुनिया के सामने रख कर शेष प्रश्न अगली पीढी के लिए छोड़ जाऊँगा जैसे कि मानव प्रजाति की हजारो पीढियां पिछले पचास हजार वर्षों से करती आई है.
और अब एक प्रश्न-
जन्म कुंडली के लिए जन्म समय क्या माना जाए.जब बालक गर्भ से बाहर आए या जब बालक माँ के पेट में हरकत करना आरम्भ करदे.या नाला काटे समय या कोई और समय?
इसको समझने के लिए यह समझना होगा कि बालक में चेतना का संचार माँ के गर्भ में शायद छठे माह से हो जाता है जब उसकी हरकते माँ को पेट में महसूस होने लगती है.तो फिर जन्म समय की प्रासंगिकता पर गौर करना जरूरी हो जाता है.
जब बालक गर्भ से बाहर आता है तो सबसे महत्वपूर्ण घटना यह होती है कि वह माँ से अपना नाता तोड़ता है और जिन्दा रहने का प्रयास करते हुए रोकर अपनी पहली सांस लेता है और इसके साथ एक और महत्वपूर्ण बात होती है उसके अवचेतन के साथ साथ एक चेतन मस्तिष्क क्रियाशील होता है जिसके सहारे वह इस संसार में अपना जीवन जियेगा.चेतन मस्तिष्क का क्रियाशील होना या बालक की पहली सांस लेना या रोना वह समय है जिसे सही जन्म समय मान कर जन्म कुंडली का निर्माण किया जाना चाहिए.
उस समय ब्रह्मांड की पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति से जिस समय बिंदु का निर्माण होता है वही उस बालक का संसार या ब्रह्मांड होता है अपना एक अलग ब्रह्मांड.उसका अपना समयाकाश.वह उसके जीवन को सदा प्रभावित करता रहेगा.

शनिवार, 12 सितंबर 2009

शनि कि उच्च और निम्न स्थति के खगोलीय मायने

ग्रहों की स्थिति के आधार पर फलित की गणना करते समय एक ज्योतिषी यहाँ भूल जाता है कि ग्रहों कि स्थिति के खगोलीय मायने क्या होते है,और तभी ग्रहों के बारे में भ्रांत विचारों का प्रचार होता है.आज शनि कि उच्च और निम्न स्थति पर चर्चा करते है.शनि के बारे में बहुत डर का प्रचार किया गया है.शनि कि साढे साती,ढैया,शनि का नीच राशि उच्च राशिः में होना,वक्री होना इत्यादि को लेकर कई अवैज्ञानिक भ्रांतिया प्रचलित है.इसको समझाने के लिए आज हम शनि के उच्च राशि और नीच राशि में होने के खगोलीय मतलब पर चर्चा करेंगे.
शनि तुला राशि में उच्च का होता है.इसको समझने के लिए हम एक बड़े वृत्त में मेष से मीन तक की बारह राशियों को क्रम से इस तरह से रखें कि मेष के ठीक सामने तुला राशि हो,वृष के ठीक सामने वृश्चिक,मिथुन के ठीक सामने धनु,कर्क के सामने मकर,सिंह के सामने कुम्भ और कन्या के ठीक सामने मीन राशि हो.ये सभी राशियाँ तारामंडल है और बीच में पृथिवी को रखें....वास्तव में पृथिवी कि अपने अक्ष पर घूर्णन और सूर्य के परिभ्रमण से इन राशियों के सापेक्ष स्थिति में परिवर्तन आता है..अब जब किसी राशिः तारामंडल ने पृथिवी को मिलाने वाली रेखा के बीच में कोई ग्रह आजाता है तो वह ग्रह उस राशि में स्थित माना जाता है.तुला राशि तारामंडल से एक ऊर्जा रेखा निकलती है जो शनि से गुजरने पर अपने ऊर्जामान में बहुगुणित होती हुई पृथिवी पर पहुँचती है.यह शनि की उच्च स्थिति होती है.इसके विपरीत अगर शनि मेष तारामंडल और पृथिवी के बीच स्थित हो तो तुला राशि तारामंडल से आने वाली ऊर्जा रेखा अपने क्षीण बल से पहले पृथिवी पर आकर शनि तक पहुँचेगी और वहां से बहुगुणित ऊर्जा में बदल कर अन्तरिक्ष में विलीन हो जायेगी...अर्थात पृथिवी के लिए शनि की ऊर्जा शून्य अथवा नकारात्मक(दिशा के अनुसार)होगी और शनि नीच राशि में माना जाएगा.
चूंकि शनि अपने ऊर्जा स्पंदन के लिए तुला राशि पर निर्भर है अतः जातक पर शनि का प्रभाव इस प्रकार तुला राशि के सापेक्ष पृथिवी की स्थिति पर निर्भर करता है.तो अगली बार शनि के प्रभाव से घबराएं नहीं...!

रविवार, 6 सितंबर 2009

वाणी में ओज और तेजस्विता -धनेश सूर्य का भाग्य भाव में होना

सबसे पहले आप सबके उत्साह वर्धक प्रतिक्रियाओं के लिए आभार.ढेर सारे मेल प्राप्त हुए उनके प्रश्नों के उत्तर मेल से देने का प्रयास करूंगा.पहले यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि ज्योतिष के सिद्धांतो के आधार पर आपके प्रश्नों के वस्तुनिष्ठ उत्तर दिए जाने का प्रयास करूंगा साथ ही कुंडली की ऊर्जा रेखाओं से जो कुंडली को बल देने वाले कारको के आधार पर भविष्य के संभावित बदलावों की परास सपष्ट करने का प्रयास करूंगा.इसमें कोई त्रुटी होने पर संख्यात्मक आंकडों के आधार पर किसी नियम पर पहुँचने का प्रयास किया जाएगा.पिछली पोस्ट पर राजेश्वर वशिष्ठ जी का प्रश्न इस प्रकार है-
प्रश्न -भारतीय धर्म-दर्शन के प्रवक्ता प्रचारक के रूप में सफलता कब मिलेगी ? कब तक अरुचिकर नौकरी को ढोना होगा?
राजेश्वर जी की कुंडली कर्क लग्न की है चौथे भाव में वक्री गुरु राहु के साथ चंडाल योग (ऊर्जात्म्क सिद्धांत के अनुसार इसे शार्ट सर्किट की तरह से ले सकते है जिसमे विपरीत ऊर्जा धाराएं अवांछित तरीके से ऊर्जा क्षय करती है)धर्म दर्शन के प्रवक्ता के लिए गुरु का प्रभावी होना आवश्यक है जो आपकी कुंडली में नहीं है.आपकी कुंडली में सप्तम भाव में उच्च का मंगल एवं मित्र राशिगत शुक्र है.मंगल शुक्र की युति एवं चन्द्रमा से दृष्ट होने से भौतिक कामनाओं के प्रति जातक की प्रबल लालसा भी आपको धर्म दर्शन के प्रति जोड़े नहीं रख पाती है.अतः मानसिक रूप से इस कुंडली का जातक धर्म और दर्शन के प्रति गहराई से नहीं जुड़ सकता.हाँ दुसरे भाव जो कि वाणी का कारक होता है का स्वामी नवम भाव में गुरु की राशि में होने से आपकी वाणी में अद्वितीय ओज और तेजस्विता होगी.इसके कारण आप धार्मिक विषयों पर धारा प्रवाह रूप से बोल सकते है.नवम भाव आपका प्रारब्ध और जन मानस में आपकी लोकप्रियता को भी बताता है.इसमें आप सफल होंगे.आपकी ऊर्जा धाराओं की समग्रता यह बताती है कि आप राजनीति में सफल होने वाले है.
आपकी के दशम भाव में केतु होने से उच्च का मंगल से दृष्ट होने से एवं नवांश में मंगल शुक्र की राशि में होने से आप सृजनात्मकता के अतिरिक्त अन्य नौकरी या व्यवसाय से असंतुष्ट रहेंगे.आप अधिकार पसंद व्यक्ति होने से भी किसी की अधीनता में कार्य करना अरुचिकर होगा.जुलाइ २०११ से सूर्य की महादशा आरम्भ होने पर आपको अपने दोनों प्रश्नों के उत्तर अनुकूल मिलेंगे.
इस कुंडली में धन वाणी और कुटुंब भाव अपार ऊर्जा लिए है.क्योंकि इसका स्वामी नवम भाव में मित्र राशि में है.कर्क लग्न में उच्च का मंगल लाभेश शुक्र के साथ राजयोग कारक है.चौथे और दशम भाव में राहु केतु की उपस्थिति नकारात्मक ऊर्जा प्रवाह बनाती है.जो मंगल बुध एवं गुरु के ऊर्जा प्रवाहो के नियंत्रण में है.अर्थात इन तीन ग्रहों के प्रभावों का उपयोग कर आप राजयोग प्राप्त कर सकते है.इस प्रकार इस कुंडली की परास सम्पतिहीन राज्य हीन होने से लेकर जातक को सफल राजनेता अधिकारी बनाने तक है।
(मैं ज्योतिष के इस ब्लॉग में उर्जात्मक ज्योतिष सिद्धांतो के आधार पर कुछ प्रयोग करने के प्रयास करना चाहता हूँ.अगर आप अपनी किसी जिज्ञासा पर चर्चा करना चाहते है तो अपना नाम ,जन्म स्थान,जन्म तिथि,जन्म समय,और प्रश्न मेल करें.साथ में यह भी लिखे कि आप के प्रश्न पर सार्वजनिक चर्चा ब्लॉग पर की जाए या नहीं.मैं पूरा प्रयास करूंगा कि सभी लोगों के प्रश्नों के उत्तर उन्हें मेल करुँ पर अधिक प्रश्न होने की वजह से ऐसा ना कर पाऊं तो सुधि पाठक मुझे क्षमा करें.
साथ ही यह ब्लॉग सकारात्मक चर्चा के लिए है...मान्यता वैज्ञानिकता,बहस बाजी इत्यादि के लिए कृपया अपना और मेरा समय खराब करे.आपको परिणाम उपयोगी लगे तो इसमें भाग ले अन्यथा आप इससे किनारा कर सकते है.)
प्रकाश