मंगलवार, 16 मार्च 2010

वाणी के भाव में उच्च का वक्री शनि और मंगल और शुक्र की पूर्ण दृष्टि की उर्जा रेखाए

अमितेश्वर जी की कुंडली उनके आग्रह पर ज्योतिष के उर्जा सिद्धांत के आधार पर अध्ययन के लिए उपलब्ध है.तो आज कुछ दुर्लभ उर्जा रेखाओं की बात करते है.अमितेश्वर जी का जन्म पटना में शाम ६ बजकर सत्तावन मिनट पर २९ मार्च १९८३ को हुआ था.
पहले व्यक्तिगत बात करते है.बुध की राशी में लग्न में चन्द्रमा और उसपर बुध और सूर्य की पूर्ण दृष्टि आपकी गेहुएं वर्ण और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बनता है.आप का प्रथम प्रभाव मिलने वाले पर अमिट छाप छोड़ता है.वाणी के भाव में उच्च का वक्री शनि और मंगल और शुक्र की पूर्ण दृष्टि गजब की उर्जा रेखाए है.आपकी आत्मविश्वास से पूर्ण बातों से हर कोई प्रभावित हो जाएगा.
आप अपने माता पिता की पहली संतान होने की ज्यादा सम्भावना है.आपके छोटे भाई होंगे.
चौथे और दसवें घर में केतु और राहू होने और चौथे धर पर शनि की दृष्टि होने से आपके माता से दूर रहने अथवा मत विभेद होने का योग.मंगल शुक्र की युति आपको विपरीत लिंगी आकर्षण में उलझ कर चिंता उत्पन्न कराती है.आप की महिला मित्र जल्दी बन जाती है और फिर परेशानी उत्पन्न कर सकती है.
धन भाव में उच्च का शनि बहुत मेहनत के बाद धन देता है.जिसे आप सम्पति निर्माण और इन्वेस्टमेंट से आपको प्राप्त होगा .आपको आयु के साथ धन संचय का योग है.आपके भाग्य भाव और लाभ भाव पर वृद्धि कारक गुरु की उर्जा रेखाएं आपके बुद्धिमता पूर्ण निर्णयों से धन प्राप्ति कराएगी.पर लाटरी जुए या खजाने से और अचानक धन प्राप्ति की उम्मीद न करें.आपका धन अचानक खर्च हो सकता है आ नहीं सकता.
२००७ तक का समय बेहद संघर्षपूर्ण और व्यथित करने वाला था.पर अब आपका अपना समय है.
२००७ से पहले शादी की सम्भावना कम थी पर उसके बाद शादी का योग है.
अध्यन अध्यापन का शौक रहेगा और यह लाभकारक भी होगा.
कुटुंब का आपके प्रति दृष्टिकोण ईर्ष्या भरा ज्यादा रहेगा.नकारात्मक रहेगा और चोट पहुँचाने वाला रहेगा.
आपकी विलक्षणता लोगों के लिए अपच साबित होगी.समाज और कुटुंब से कोई उम्मीद न पालें.
आपने अपने बचपन से आज तक संघर्ष किया है उसके सुखद फल आपकी आने वाली जिन्दगी में बहुत मिलेंगे.आप बहुत सरल ह्रदय और भावुक है.लोगों के आपके प्रति बदलते थोड़े से भी व्यवहार को आप पहचान लेते है.पर आपका आत्म विशवास आपकी सबसे बड़ी पूँजी साबित होगी.
आपकी कुंडली में कई संभावनाएं है.आपकी प्रथम संतान बालिका होने की सम्भावना है.आपकी पत्नी का प्रभाव क्षेत्र कही आपसे अधिक होने की सम्भावना है.आपकी पत्नी से आपको भाग्य और सम्पत्ति दोनों प्राप्त होंगे.पत्नी के नाम व्यवसाय अथवा पत्नी के राज योग से आपको प्रबल लाभ होने की सम्भावना है.आप बुद्धिमान व्यक्ति है और तर्क बुद्धि के प्रबल प्रभाव से आपके मन में स्थापित मान्यता को बदलने की संभावना नहीं रह जाती है.आप जैसे है वैसे ठीक है.
इसतरह से आपकी बनी कुंडली से उपरोक्त बाते निकल कर आती है.
मुझे कम्प्यूटर पर किसी कुंडली को दर्शाना नहीं आता है.वर्ना आपकी कुंडली का चित्र प्रस्तुत करता.

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

ब्रह्मांड के नियम और भारतीय दर्शन

ई दिनों से ब्लॉग से दूर रहा हूँ,नौकरी की व्यस्तता आपको समय नहीं लेने देती..पर जैसा कि मैंने अपने कई साथियों को कहा है कि जब जितना भी समय मिलेगा ज्योतिष को अवश्य दूंगा.पिछली बार पोस्ट लिखने के बाद इंडिक ट्रांसलिटरेशन ने धोखा देदिया.काफी लिखा था पर सब उड़ गया.इसके बाद कई दिनों से लिखने का मन नहीं हुआ.अब फिर शुरू कर रहा हूँ.
अंतर चेतना का समय रेखा से गहरा नाता है यह में पिछली पोस्ट में स्पष्ट कर चुका हूँ.ब्रह्मांड के नियम और भारतीय दर्शन दोनों की गहरी समझ ही आपको इसके पीछे के सिद्धांत स्पष्ट करने में सहायक हो सकती है.जैसा हम जानते है.बिगबैंग से ब्रह्मांड का आरम्भ हुआ है.ब्रह्मांड के विस्तार के सिद्धांतो में आधुनिकतम सिद्धांत स्ट्रिंग थियोरी है.स्टीफन हाकिंग ने अपनी पुस्तक 'ब्रीफ हिस्टरी ऑफ़ टाइम' में एक ऐसे सिद्धांत की आवश्यकता पर जोर दिया जो प्रकृति के सभी मूल भूत बलों की एक साथ व्याख्या कर सके,इसे उन्होंने 'द थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग'. इस सिद्धांत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा क्षीण गुरुत्वाकर्षण बल को जो अन्य मूल बलों के सामने नगण्य है को इस थ्योरी में फिट करने में आने वाली मुश्किल है.प्रकृति में चार तरह के मूल बल है जो गुरुत्वाकर्षण बल ,विद्युत् चुम्बकीय बल,क्षीण नाभिकीय बल और प्रबल नाभिकीय बल है.इसी तरह से मैटर के मूल पार्टिकल्स को क्वार्क्स(अप,डाउन,चरम, स्ट्रेंज,बाटम और टॉप) लेपटांस(इलेक्ट्रोन,म्युआन,ट्युआन और न्यूट्रिनो).
सभी मूल बल मूल भूत कणों द्वारा उत्पन्न होते है.विद्युत् चुम्बकीय बल फोटोंस से,गुरुत्वाकर्षण बल ग्रेविटोंस से,प्रबल नाभिकी बल आठ प्रकार के ग्लुओंस से और क्षीण नाभिकीय बल तीन तरह के पार्टिकल्स डब्लू+,डब्लू- और जेड से प्रसारित होते है.स्ट्रिंग थ्योरी में इन पार्टिकल्स को एक तरह से स्पंदन करने वाली स्ट्रिंग्स का समूह माना गया है और इस प्रकार इस थ्योरी से 'थ्योरी आफ एवरीथिंग' की और विज्ञान बढ़ा है.
ब्रह्मांड की व्याख्या में आगे की आधुनिक खोजें 'एम- थ्योरी' पर आस लगाये हुए है.रोचक बात यह है कि 'एम-थ्योरी' ब्रह्माण्ड के ग्यारह आयामों की अवधारणा की स्थापना करती है.हम जब आयामों की बात करते है तो हमारी फ्रेम में लगी फोटो लम्बाई और चौड़ाई के दो आयामों में होती है,इसमें गहराई को जोड़ने पर हम तीसरे आयाम को समझ सकते है.समय चौथा आयाम है जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ उत्पन्न हुआ है.इसके अलावा किसी आयाम के बारे में हम नहीं जानते.'एम-थ्योरी' ऐसी मेम्ब्रेंस की कल्पना करती है जो दस आयाम में फैली है जिसमे ब्रह्मांड समाहित है.ऐसे अनंत ब्रह्मांड मेम्ब्रेंस के रूप में शून्य से उत्पन्न हो रहे है.उसके साथ ही समय और ग्यारह आयामी विश्व की रचना होती है.अन्य सात आयाम में कई अत्यंत सूक्ष्म हो सकते कईयों का विस्तार ब्रह्मांड की सीमा तक हो सकता है.गुरुत्वाकर्षण बल का प्रसार अन्य आयामों तक होने के कारण हमारे आयाम में गुरुत्वाकर्षण बल अपनी ऊर्जा अन्य आयाम में खोकर दुर्बल रूप से मौजूद है.यही 'थ्योरी आफ एवरीथिंग' है.
मैंने यह सब संक्षिप्त में इसलिए स्पष्ट किया है कि हम अपने दिमाग की संकुचितता को छोड़ कर चेतना आधारित भारतीय दर्शन को अलग तरह से स्वीकार कर सकें.नागार्जुन का शून्यवाद और शंकर का ब्रहम जिस शून्य की कल्पना करता है उसकी तुलना शून्य से उत्पन्न होने वाले ब्रह्मांड से की जा सकती है.स्थूल जगत,सूक्ष्म जगत और कारण जगत की भारतीय कल्पना और सप्त लोक की अवधारणा आश्चर्य जनक रूप से अन्य सात आयामों की अवधारणा के निकट है.एक ऐसे आयाम में जहाँ गुरुत्वाकर्षण बल करोड़ों गुना अधिक है सूक्ष्म जगत और सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व संभव है.शरीर में सप्त चक्र और कुंडलिनी की अवधारणा यह सब मुझे ब्रह्मांड के विस्तृत संदर्भो में जोड़ना रोचक और अभिभूत कर देने वाला लगता है.यह कितना प्रमाणिक अथवा अप्रमाणिक है इसके बारे में विचार किये बिना मुझे मेरा अंतर्ज्ञान इस पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
मेरा मानना है कि कई सूक्ष्म आयाम हमारी अंतर्चेतना के ऊर्जा चक्रों में स्थित है या हम अपनी अंतर्चेतना कि मदद से इन आयामों के पार जा सकते है.शायद यही भूमिका हमारी अंतर्चेतना की समय रेखा के पार झाँकने के प्रयासों में है.ज्योतिषीय गणनाएं इसके लिए अच्छा उपकरण है.ज्योतिष में अंतर्चेतना के प्रयोग पर वैसे तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है पर हम अब इस पर विषयांतर नहीं होने देना चाहते है.हम आगे के अंको में ऊर्जात्मक सिद्धांतो के आधार पर ज्योतिष की व्याख्या पर केन्द्रित रहेंगे.

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

भविष्यवाणी,अवचेतन और अवैज्ञानिकता

फलित ज्योतिष की अवधारणा को समझने के लिए समय रेखा और उस पर भूत वर्तमान और भविष्य के बिन्दुओं की मूल प्रकृति को समझना आवश्यक है.अपने नैसर्गिक गुणों के कारण अतीत निश्चित और अपरिवर्तनीय होता है,वर्तमान प्रत्यक्ष होता है और भविष्य अनिश्चित और परिवर्तनीय होता है.जहाँ तक विज्ञान के भी जानने की बात है अपने पूर्ण रूप में अतीत(क्या होचुका है?)और वर्तमान(क्या हो रहा है?)को भी जान नहीं पाया है,तो भविष्य के बारे में जो अनिश्चित और परिवर्तनीय है,को सही बताने का दावा करना विज्ञान और ज्योतिष दोनों के लिए कठिनाई भरा ही होगा.मगर इससे न तो विज्ञान मौसम,प्रगति, अर्थव्यवस्था और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानने के लिए होने वाले अनुसंधान रोकेगा और न ही ज्योतिष के आधार पर भविष्यवाणियां करना रुकेगा.मगर विज्ञान अपने एकत्र आंकडों के आधार पर अपनी भविष्यवाणियों को ज्यादा सशक्त आधार दे पा रहा है और ज्योतिष अपनी अवधारणाओं और उनके परिक्षण के अभाव में अतार्किक होता जारहा है.मेरा जोर इस बात पर है कि ज्योतिष के अंतर्भूत तत्वों के आधार पर निश्चित अवधारणाएं बना कर उनका वैज्ञानिक परिक्षण किया जावे.और प्रयोग प्रेक्षण और निष्कर्ष विधि से वर्तमान नियमों का परिक्षण किया जावे और आवश्यक हो तो संशोधन किया जावे. भारतीय फलित ज्योतिष में चेतन और अचेतन की महत्वपूर्ण भूमिका है.क्योंकि चेतना के प्रकट होने के क्षण(जन्म)से ही जन्म कुंडली का निर्माण कर फलित निकाला जाता है.समस्त जड़ और अचेतन जगत तो वैसे ही अत्यंत सटीक वैज्ञानिक नियमों से संचालित होता है.अनु परमाणु और क्वार्क से लेकर विशाल गेलेक्सियाँ क्षणांश के लिए भी नियम नहीं तोड़ती.फिर भी हम उनके बारे में क्षणांश ही जान पाए है.इनके भविष्य के बारे में वैज्ञानिक नियमो से जाना जासकता है.पर जहाँ तक चेतन जगत का सवाल है उसके नियम अधिक जटिल है इतने जटिल कि हम उनके बारे में वैज्ञानिक तौर पर कुछ नहीं जानते है.अतः इसकी भविष्यवाणी किया जाना कठिन है.इसकारण से भी भविष्यवाणी और कठिन हो जाती है कि चेतना से संचालित होने वाली इकाइयों के पैरामीटर अनगिनत होते है.इन सब पैरामीटर को समाहित करते हुए नियम खोजना कठिन होता है. फिर शायद चेतना से संचालित इकाइयों के बारे में भविष्य वाणी किया जाना अवैज्ञानिक है. इसको उदहारण से समझा जा सकता है.एक जड़ वस्तु जैसे पत्थर आदि को गिराने या फेंकने पर उसकी प्रारंभिक सूचनाओं के आधार पर उसकी गति, तय की जाने वाली दूरी, प्रभाव आदि की सही सही भविष्य वाणी की जासकती है पर एक चेतन प्राणी जैसे कुत्ता आदि जानवर के व्यवहार के बारें में भविष्यवाणी कम सटीकता से की जा सकेगी.मानवीय (चेतना का उच्चतम स्तर)व्यवहार के बारे में सटीकता और कम हो जायेगी.और फिर समाज की सामूहिक चेतना के बारे में यह संभावना और कम हो जायेगी.यहाँ तक हम वर्तमान की बात कर रहे है फिर चेतन इकाइयों के भविष्य के बारे में जो अनिश्चित और परिवर्तनीय है कह पाना अति कठिन है.फिर निश्चित ही फलित वैज्ञानिक दायरे से दूर की वस्तु है. मानव सभ्यता के आरम्भ से लेकर आज तक कई जीनियस,प्रोफेट,भविष्यवक्ता और संत हुए है जिनकी भविष्यवाणी सटीकता तक सही हुई है. एडगर कैसी और जूल वर्न बीसवीं सदी के प्रसिद्द भविष्यवक्ता है.(एडगर कैसी के बारे में और उनकी सात प्रसिद्द भविष्यवानियों के बारे में लिंक http://sleepingprophet.org/) जूल्स वर्न ने अपने फिक्शन में सटीक भविष्यवानियाँ की थी.नस्त्रदामस से आजतक के भविष्यवक्ताओं ने चेतन इकाइयों और उनसे प्रभावित घटनाओं के बारें में तन्द्रा में भविष्यवानियाँ की है.रमल,तेरोकार्ड शकुन, ओमेन और जन्म कुंडली ये सब माध्यम है भविष्य जानने के उपकरण है.इसका उपयोग करके लोग अवचेतनता और समाधि में जाकर भविष्यवाणी करते है.सपष्ट रूप से इन्हें अवैज्ञानिक कहा जासकता है. पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानव जाति ने जितना समय बाहर के संसार का विज्ञान जानने के लिए बिताया है उससे कई गुना अधिक समय उसने अपने आंतरिक संसार और अवचेतन के अध्ययन के लिए दिया है. भारतीय ऋषियों ने सर्व प्रथम पृथिवी के सापेक्ष खगोलीय गणनाओं के माध्यम से सटीक समय रेखा का पता लगाया.उस समय रेखा पर ग्रहों की स्थिति के आधार पर जन्म कुंडली का आविष्कार किया.ग्रहों की स्थिति के आधार पर ब्रह्मांड की उस तात्क्षणिक स्थिति को खोजा जो जातक के इस ब्रह्माण्ड में प्रथम चेतन क्षण को दर्शाता है.ऊर्जा रेखाओं के प्रवाह और दिशा के आधार पर वह परास निर्धारित की जो किसी भविष्यवक्ता को संभावना की दिशा बता सके.कुलमिलाकर सबसे पहले भविष्यवानियों की आधारभूत अवधारणाओं का निर्माण भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने किया.और समय के साथ हुए अनुभविक प्रयोगों से भ्रगुसंहिता जैसे ग्रंथो को लिखा गया.अफसोस यह रहा की बाद में लोगों ने इसे चरम विद्या बनाकर इसके प्रगति के द्वार बंद कर दिए.आज ज्योतिष और उसकी भविष्यवानियाँ तो है पर भारतीय ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार लुप्त हो चुका है.भविष्यवक्ता यह घोषणा तो कर देते है की दूसरे भाव पर गुरु की पूर्ण दृष्टि व्यक्ति को धनवान बनाते है.पर गुरु की खगोलीय स्थिति का समग्र चित्र उनके मस्तिष्क में कभी नहीं बन पाता है.नहीं ऐसी कोई अवधारणा निर्मित कर परीक्षण करने का प्रयास होता है.उसके बिना ज्योतिष को विज्ञान कहने का दावा मजबूत आधार नहीं प्राप्त कर सकता है. मैं फिर भी इसे विज्ञान के रूप में मान कर इसकी गणनाओं और भविष्य कथनों का वैज्ञानिक आधार परिक्षण करना चाहूँगा.

शनिवार, 19 सितंबर 2009

अपना अपना समयाकाश

अक्सर ज्योतिष को विज्ञानं मानने और न मानने पर जब तर्क दिए जाते है तो दोनों पक्ष पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो कर अपनी स्थापित धारणाओं के परे कुछ भी सुनना पसंद नहीं करते है.और विज्ञान के मूल अर्थ से परे रहकर वैज्ञानिकता पर चर्चा करने लगते है.एक पक्ष ज्योतिष को विज्ञान मानते हुए विज्ञान को विज्ञान मानने से इनकार करने लगता है तो दूसरा पक्ष ज्योतिष पर बात करने को भी समय खराब करना मानकर उसके तथ्यों पर वैज्ञानिक विचारविमर्श की आवश्यकता को नकार देता है.
मेरे विचार से ज्योतिष एक विद्या है.जिसकी खगोलीय गणनाओं में सटीक वैज्ञानिकता है...आज से दो हजार वर्ष पूर्व भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस सटीकता से खगोलीय गणनाएं की वह आज के कम्पुटर युग के समकक्ष है.हजारो वर्षो से मानव की भविष्य जानने की उत्कट इच्छा के चलते उन तारामंडल और ग्रह स्थितियों के साथ जीवन के परिणामों को जोड़ने प्रयास करते हुए फलित ज्योतिष के सिद्धांतो का निर्माण किया गया.प्रयोग प्रेक्षण और निष्कर्ष के आधार पर मूलभूत बाते तय की गयी.और शायद कहीं कहीं इस प्रकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचलन का आरम्भ हुआ...और कई भ्रांतिया फलित ज्योतिष में समाविष्ट होने लगी.
मेरे विचार से जितने भी सामाजिक विज्ञान है उनके वेरिएबल्स अधिक होने से उनमे सही कार्य कारण सम्बन्ध स्थापित करना कठिन होता है.लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके वैज्ञानिक आधार की खोज रोक दी जावे.विज्ञान भी अपने सिद्धांतो पर बरसो के प्रयोगों और पीढियों के प्रयासों से पहुंचा है...वह समय भी आया कि केप्लर और गेलिलियो को अपने सही सिद्धन्तो की कीमत चुकानी पड़ी थी...पर किसी भी विज्ञान का प्रमुख आधार होता है.उसकी स्थापित या नई अवधारणाओं का वस्तुनिष्ठ परीक्षण हो..और इन आधारों पर कार्य कारण सम्बन्ध की स्थापना के लिए तथ्यों के आधार पर नियम स्थापित किये जाए...पर पहले से इसे न तो दिव्य शास्त्र माना जाए और न ही दकियानूसी अंधविश्वास.
कई प्रश्न पाठको ने मेल के जरिये या फोन पर मुझे किये है..मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं स्वयम फलित ज्योतिष को न तो अविज्ञान मान कर चलता हूँ न ही इसे स्थापित विज्ञान समझ कर चलना चाहता हूँ....टाइम स्पेस की दीर्घ समय रेखा पर हजारो पीढियों की भविष्य जानने की उत्कंठा में संग्रह किये अनुभवों के तथ्य अगर बार बार पुष्ट हों तो उन्हें किन वैज्ञानिक सिद्धांतो पर विवेचित किया जाना चाहिए बस,उनकी तलाश में कुछ कदम चलना चाहता हूँ.अगर फलित शत प्रतिशत सही हों तो उसे विज्ञान माना जाना चाहिए...अगर साठ प्रतिशत से अधिक सही हों तो उसमे वैज्ञानिक तथ्यों को खोजने के प्रयास किये जाने चाहिए और अगर सामान्य प्रायिकता औसत से कम सही हो तो हमें इस विज्ञान मानने से साफ़ इनकार कर देना चाहिए.
मेरे अनुभव से फलित सत्तर प्रतिशत तक सही रहा है...तो मैंने इसमें वैज्ञानिक सिद्धांत खोजने के प्रयास किये है.और कभी निराश नहीं हुआ हूँ.
जब मनोविज्ञान में अवचेतन मन को अभी समझा नहीं जा सका है तो शायद परामनोविज्ञान अभी दूर की कौडी है.यह वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव मस्तिष्क में अरबों न्युरोंस है...और हम अपने दिमाग का बहुत छोटा हिस्सा ही उपयोग में ले पारहे है...पर नब्बे प्रतिशत अवचेतन के बारे में कोई जानकारी नहीं है.पर आर्श्चय जनक तथ्य यह है कि हम जितना मानव मस्तिष्क के बारे में खोज कर पाए है ठीक वही अनुपात में ब्रह्मांड की खोज कर पाए है.मानव की वैज्ञानिक खोजों के इतिहास में मस्तिष्क और ब्रह्मांड के रहस्य एक साथ अनावृत हो रहे है.शायद पिंड और ब्रह्मांड में यह अनूठा साम्य मानव की अनुसंधान और खोजों में बहुत कुछ करने की प्रेरणा देता रहेगा.
मैं इन प्रश्नों के उत्तर खोजते रहना चाहूँगा...और जो खोज पाऊं उसे दुनिया के सामने रख कर शेष प्रश्न अगली पीढी के लिए छोड़ जाऊँगा जैसे कि मानव प्रजाति की हजारो पीढियां पिछले पचास हजार वर्षों से करती आई है.
और अब एक प्रश्न-
जन्म कुंडली के लिए जन्म समय क्या माना जाए.जब बालक गर्भ से बाहर आए या जब बालक माँ के पेट में हरकत करना आरम्भ करदे.या नाला काटे समय या कोई और समय?
इसको समझने के लिए यह समझना होगा कि बालक में चेतना का संचार माँ के गर्भ में शायद छठे माह से हो जाता है जब उसकी हरकते माँ को पेट में महसूस होने लगती है.तो फिर जन्म समय की प्रासंगिकता पर गौर करना जरूरी हो जाता है.
जब बालक गर्भ से बाहर आता है तो सबसे महत्वपूर्ण घटना यह होती है कि वह माँ से अपना नाता तोड़ता है और जिन्दा रहने का प्रयास करते हुए रोकर अपनी पहली सांस लेता है और इसके साथ एक और महत्वपूर्ण बात होती है उसके अवचेतन के साथ साथ एक चेतन मस्तिष्क क्रियाशील होता है जिसके सहारे वह इस संसार में अपना जीवन जियेगा.चेतन मस्तिष्क का क्रियाशील होना या बालक की पहली सांस लेना या रोना वह समय है जिसे सही जन्म समय मान कर जन्म कुंडली का निर्माण किया जाना चाहिए.
उस समय ब्रह्मांड की पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति से जिस समय बिंदु का निर्माण होता है वही उस बालक का संसार या ब्रह्मांड होता है अपना एक अलग ब्रह्मांड.उसका अपना समयाकाश.वह उसके जीवन को सदा प्रभावित करता रहेगा.

शनिवार, 12 सितंबर 2009

शनि कि उच्च और निम्न स्थति के खगोलीय मायने

ग्रहों की स्थिति के आधार पर फलित की गणना करते समय एक ज्योतिषी यहाँ भूल जाता है कि ग्रहों कि स्थिति के खगोलीय मायने क्या होते है,और तभी ग्रहों के बारे में भ्रांत विचारों का प्रचार होता है.आज शनि कि उच्च और निम्न स्थति पर चर्चा करते है.शनि के बारे में बहुत डर का प्रचार किया गया है.शनि कि साढे साती,ढैया,शनि का नीच राशि उच्च राशिः में होना,वक्री होना इत्यादि को लेकर कई अवैज्ञानिक भ्रांतिया प्रचलित है.इसको समझाने के लिए आज हम शनि के उच्च राशि और नीच राशि में होने के खगोलीय मतलब पर चर्चा करेंगे.
शनि तुला राशि में उच्च का होता है.इसको समझने के लिए हम एक बड़े वृत्त में मेष से मीन तक की बारह राशियों को क्रम से इस तरह से रखें कि मेष के ठीक सामने तुला राशि हो,वृष के ठीक सामने वृश्चिक,मिथुन के ठीक सामने धनु,कर्क के सामने मकर,सिंह के सामने कुम्भ और कन्या के ठीक सामने मीन राशि हो.ये सभी राशियाँ तारामंडल है और बीच में पृथिवी को रखें....वास्तव में पृथिवी कि अपने अक्ष पर घूर्णन और सूर्य के परिभ्रमण से इन राशियों के सापेक्ष स्थिति में परिवर्तन आता है..अब जब किसी राशिः तारामंडल ने पृथिवी को मिलाने वाली रेखा के बीच में कोई ग्रह आजाता है तो वह ग्रह उस राशि में स्थित माना जाता है.तुला राशि तारामंडल से एक ऊर्जा रेखा निकलती है जो शनि से गुजरने पर अपने ऊर्जामान में बहुगुणित होती हुई पृथिवी पर पहुँचती है.यह शनि की उच्च स्थिति होती है.इसके विपरीत अगर शनि मेष तारामंडल और पृथिवी के बीच स्थित हो तो तुला राशि तारामंडल से आने वाली ऊर्जा रेखा अपने क्षीण बल से पहले पृथिवी पर आकर शनि तक पहुँचेगी और वहां से बहुगुणित ऊर्जा में बदल कर अन्तरिक्ष में विलीन हो जायेगी...अर्थात पृथिवी के लिए शनि की ऊर्जा शून्य अथवा नकारात्मक(दिशा के अनुसार)होगी और शनि नीच राशि में माना जाएगा.
चूंकि शनि अपने ऊर्जा स्पंदन के लिए तुला राशि पर निर्भर है अतः जातक पर शनि का प्रभाव इस प्रकार तुला राशि के सापेक्ष पृथिवी की स्थिति पर निर्भर करता है.तो अगली बार शनि के प्रभाव से घबराएं नहीं...!

रविवार, 6 सितंबर 2009

वाणी में ओज और तेजस्विता -धनेश सूर्य का भाग्य भाव में होना

सबसे पहले आप सबके उत्साह वर्धक प्रतिक्रियाओं के लिए आभार.ढेर सारे मेल प्राप्त हुए उनके प्रश्नों के उत्तर मेल से देने का प्रयास करूंगा.पहले यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि ज्योतिष के सिद्धांतो के आधार पर आपके प्रश्नों के वस्तुनिष्ठ उत्तर दिए जाने का प्रयास करूंगा साथ ही कुंडली की ऊर्जा रेखाओं से जो कुंडली को बल देने वाले कारको के आधार पर भविष्य के संभावित बदलावों की परास सपष्ट करने का प्रयास करूंगा.इसमें कोई त्रुटी होने पर संख्यात्मक आंकडों के आधार पर किसी नियम पर पहुँचने का प्रयास किया जाएगा.पिछली पोस्ट पर राजेश्वर वशिष्ठ जी का प्रश्न इस प्रकार है-
प्रश्न -भारतीय धर्म-दर्शन के प्रवक्ता प्रचारक के रूप में सफलता कब मिलेगी ? कब तक अरुचिकर नौकरी को ढोना होगा?
राजेश्वर जी की कुंडली कर्क लग्न की है चौथे भाव में वक्री गुरु राहु के साथ चंडाल योग (ऊर्जात्म्क सिद्धांत के अनुसार इसे शार्ट सर्किट की तरह से ले सकते है जिसमे विपरीत ऊर्जा धाराएं अवांछित तरीके से ऊर्जा क्षय करती है)धर्म दर्शन के प्रवक्ता के लिए गुरु का प्रभावी होना आवश्यक है जो आपकी कुंडली में नहीं है.आपकी कुंडली में सप्तम भाव में उच्च का मंगल एवं मित्र राशिगत शुक्र है.मंगल शुक्र की युति एवं चन्द्रमा से दृष्ट होने से भौतिक कामनाओं के प्रति जातक की प्रबल लालसा भी आपको धर्म दर्शन के प्रति जोड़े नहीं रख पाती है.अतः मानसिक रूप से इस कुंडली का जातक धर्म और दर्शन के प्रति गहराई से नहीं जुड़ सकता.हाँ दुसरे भाव जो कि वाणी का कारक होता है का स्वामी नवम भाव में गुरु की राशि में होने से आपकी वाणी में अद्वितीय ओज और तेजस्विता होगी.इसके कारण आप धार्मिक विषयों पर धारा प्रवाह रूप से बोल सकते है.नवम भाव आपका प्रारब्ध और जन मानस में आपकी लोकप्रियता को भी बताता है.इसमें आप सफल होंगे.आपकी ऊर्जा धाराओं की समग्रता यह बताती है कि आप राजनीति में सफल होने वाले है.
आपकी के दशम भाव में केतु होने से उच्च का मंगल से दृष्ट होने से एवं नवांश में मंगल शुक्र की राशि में होने से आप सृजनात्मकता के अतिरिक्त अन्य नौकरी या व्यवसाय से असंतुष्ट रहेंगे.आप अधिकार पसंद व्यक्ति होने से भी किसी की अधीनता में कार्य करना अरुचिकर होगा.जुलाइ २०११ से सूर्य की महादशा आरम्भ होने पर आपको अपने दोनों प्रश्नों के उत्तर अनुकूल मिलेंगे.
इस कुंडली में धन वाणी और कुटुंब भाव अपार ऊर्जा लिए है.क्योंकि इसका स्वामी नवम भाव में मित्र राशि में है.कर्क लग्न में उच्च का मंगल लाभेश शुक्र के साथ राजयोग कारक है.चौथे और दशम भाव में राहु केतु की उपस्थिति नकारात्मक ऊर्जा प्रवाह बनाती है.जो मंगल बुध एवं गुरु के ऊर्जा प्रवाहो के नियंत्रण में है.अर्थात इन तीन ग्रहों के प्रभावों का उपयोग कर आप राजयोग प्राप्त कर सकते है.इस प्रकार इस कुंडली की परास सम्पतिहीन राज्य हीन होने से लेकर जातक को सफल राजनेता अधिकारी बनाने तक है।
(मैं ज्योतिष के इस ब्लॉग में उर्जात्मक ज्योतिष सिद्धांतो के आधार पर कुछ प्रयोग करने के प्रयास करना चाहता हूँ.अगर आप अपनी किसी जिज्ञासा पर चर्चा करना चाहते है तो अपना नाम ,जन्म स्थान,जन्म तिथि,जन्म समय,और प्रश्न मेल करें.साथ में यह भी लिखे कि आप के प्रश्न पर सार्वजनिक चर्चा ब्लॉग पर की जाए या नहीं.मैं पूरा प्रयास करूंगा कि सभी लोगों के प्रश्नों के उत्तर उन्हें मेल करुँ पर अधिक प्रश्न होने की वजह से ऐसा ना कर पाऊं तो सुधि पाठक मुझे क्षमा करें.
साथ ही यह ब्लॉग सकारात्मक चर्चा के लिए है...मान्यता वैज्ञानिकता,बहस बाजी इत्यादि के लिए कृपया अपना और मेरा समय खराब करे.आपको परिणाम उपयोगी लगे तो इसमें भाग ले अन्यथा आप इससे किनारा कर सकते है.)
प्रकाश

सोमवार, 31 अगस्त 2009

उर्जात्मक ज्योतिष


पढने की एक आदत ने ज्योतिष की पुस्तकों को भी पढने पर मजबूर कर दिया था.विज्ञान का विद्यार्थी होने से मेरी तर्क बुद्धि ने ज्योतिष को वज्ञान के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया.जब दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया तो भारतीय दर्शन के छ मुख्य अंगों में शिक्षा, व्याकरण,कल्प,निरुक्त,छंद और ज्योतिष में इसको शामिल पाकर हैरानी हुई..थोडा नजरिया बदला.एकबार मेरे गुरुदेव दुर्गाशंकर जी ओझा से इस विषय में चर्चा हुई तो उन्होंने जो बताया वह इस तरह से था-
ज्योतिष वस्तुत स्पेस टाइम सिद्धांत के चौथे आयाम को जानने की विधा है.वास्तव में किसी स्थान विशेष पर समय रेखा के तीन हिस्से भूत वर्तमान और भविष्य होते है...जिसमे भविष्य अज्ञात होता है और भूत अपरिवर्तनीय.ज्योतिष की ग्रह गतिक गणनाओं में पृथिवी के सन्दर्भ में समय के बिंदु निर्धारित किये गए है जो पूरी तरह से वैज्ञानिक गणनाओं पर आधारित है.विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार भविष्य अनिश्चित होता है..मगर उसके मोटे क्षेत्रों के बारे में भविष्य वाणी की जा सकती है जैसे १०५ वर्ष की आयु तक ९९ प्रतिशत मानव जीवित नहीं रहेंगे...१ अरब साल बाद पृथ्वी पर जीवन नहीं रहेगा इत्यादि..पर जब किसी घटना की समय बिंदु पर सटीक भविष्यवाणी की बात आती है तो स्थिति अस्पष्ट ही रहती है.हम बाढ़ सूखे युद्ध आतंकवाद इत्यादि की घोषणा तो ज्योतिष से करलेते है पर सही सही यह नहीं बता पाते है की ठीक कब और कहाँ क्या घटना घटित होगी.
ऐसा इसलिए भी है कि ला आफ यूनिवर्स के अनुसार भविष्य परिवर्तनीय है...जैसे अगर हम ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रण में नहीं लाते है तो विनाश कारी परिणाम होंगे और अगर हम इस पर नियन्त्रण कर लेते है तो विनाश कारी परिणाम नहीं होंगे.यही बात घटना विशेष अथवा व्यक्तिविशेष पर लागू होती है.अर्थात ज्योतिष से की गई भविष्यवाणी पुरुषार्थ से बदली जा सकती है.कालिदास का उदाहरण स्पष्ट है.
फिर प्रश्न उठता है कि ज्योतिष की क्या आवश्यकता है?जब पुरुषार्थ ही मायने रखता है तो अन्य बातों का क्या अर्थ है.इस बात को जानने से पहले ज्योतिष के ऊर्जा सिद्धांत को समझना पड़ता है.वास्तव में कुंडली में ग्रहों के उच्च नीच स्वग्रही मित्र राशिः शत्रु राशि में होने के अत्यंत भ्रामक और भयानक अर्थ प्रस्तुत कथित ज्योतिषियों ने अपनी दुकानदारी चलाने के लिए प्रस्तुत किये है..वास्तव में उच्च और निम्न ग्रहों की ऊर्जा स्थितियां है..जैसे इलेक्ट्रिसिटी के दो सिरे +एवं -होते है,चुम्बक के + व - दो ध्रुव होते है वैसे ही ग्रहों की उच्च और निम्न दो ऊर्जा स्थितियां होती है.जैसे विद्युत का प्रवाह +से - की ओर होता है वैसे ही कुंडली की ऊर्जा का प्रवाह ग्रहों की दृष्टि युति स्वक्षेत्री, मित्र क्षेत्री शत्रु क्षेत्री के आधार पर होता है.इस तरह से अगर कोई ग्रह अगर निम्न होकर किसी सबल ग्रह से द्रष्ट अथवा युति में नहीं हो तो उसके परिणाम बदले नहीं जासकते है.इस प्रकार ग्रहों की उर्जा प्रवाह रेखाएं यह तय करती है कि भविष्य के परिणाम किस हद तक बदले जा सकते है.
इस प्रकार ज्योतिष की एक शाखा जिसमे फलित कुंडली में ग्रहों के उर्जा प्रवाह के आधार पर निकाला जाए को उर्जात्मक ज्योतिष कहते है.उर्जात्मक ज्योतिष के सिद्धांतो के आधार पर परिणाम ज्यादा सही और उपयोगी हो सकते है.

मैं ज्योतिष के इस ब्लॉग में उर्जात्मक ज्योतिष सिद्धांतो के आधार पर कुछ प्रयोग करने के प्रयास करना चाहता हूँ.अगर आप अपनी किसी जिज्ञासा पर चर्चा करना चाहते है तो अपना नाम ,जन्म स्थान,जन्म तिथि,जन्म समय,और प्रश्न इ मेल करें.साथ में यह भी लिखे कि आप के प्रश्न पर सार्वजनिक चर्चा ब्लॉग पर की जाए या नहीं.मैं पूरा प्रयास करूंगा कि सभी लोगों के प्रश्नों के उत्तर उन्हें मेल करुँ पर अधिक प्रश्न होने की वजह से ऐसा ना कर पाऊं तो सुधि पाठक मुझे क्षमा करें.
साथ ही यह ब्लॉग सकारात्मक चर्चा के लिए है...मान्यता वैज्ञानिकता,बहस बाजी इत्यादि के लिए कृपया अपना और मेरा समय खराब न करे.आपको परिणाम उपयोगी लगे तो इसमें भाग ले अन्यथा आप इससे किनारा कर सकते है.
प्रकाश