
मेरे विचार से ज्योतिष एक विद्या है.जिसकी खगोलीय गणनाओं में सटीक वैज्ञानिकता है...आज से दो हजार वर्ष पूर्व भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस सटीकता से खगोलीय गणनाएं की वह आज के कम्पुटर युग के समकक्ष है.हजारो वर्षो से मानव की भविष्य जानने की उत्कट इच्छा के चलते उन तारामंडल और ग्रह स्थितियों के साथ जीवन के परिणामों को जोड़ने प्रयास करते हुए फलित ज्योतिष के सिद्धांतो का निर्माण किया गया.प्रयोग प्रेक्षण और निष्कर्ष के आधार पर मूलभूत बाते तय की गयी.और शायद कहीं कहीं इस प्रकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचलन का आरम्भ हुआ...और कई भ्रांतिया फलित ज्योतिष में समाविष्ट होने लगी.
मेरे विचार से जितने भी सामाजिक विज्ञान है उनके वेरिएबल्स अधिक होने से उनमे सही कार्य कारण सम्बन्ध स्थापित करना कठिन होता है.लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके वैज्ञानिक आधार की खोज रोक दी जावे.विज्ञान भी अपने सिद्धांतो पर बरसो के प्रयोगों और पीढियों के प्रयासों से पहुंचा है...वह समय भी आया कि केप्लर और गेलिलियो को अपने सही सिद्धन्तो की कीमत चुकानी पड़ी थी...पर किसी भी विज्ञान का प्रमुख आधार होता है.उसकी स्थापित या नई अवधारणाओं का वस्तुनिष्ठ परीक्षण हो..और इन आधारों पर कार्य कारण सम्बन्ध की स्थापना के लिए तथ्यों के आधार पर नियम स्थापित किये जाए...पर पहले से इसे न तो दिव्य शास्त्र माना जाए और न ही दकियानूसी अंधविश्वास.
कई प्रश्न पाठको ने मेल के जरिये या फोन पर मुझे किये है..मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं स्वयम फलित ज्योतिष को न तो अविज्ञान मान कर चलता हूँ न ही इसे स्थापित विज्ञान समझ कर चलना चाहता हूँ....टाइम स्पेस की दीर्घ समय रेखा पर हजारो पीढियों की भविष्य जानने की उत्कंठा में संग्रह किये अनुभवों के तथ्य अगर बार बार पुष्ट हों तो उन्हें किन वैज्ञानिक सिद्धांतो पर विवेचित किया जाना चाहिए बस,उनकी तलाश में कुछ कदम चलना चाहता हूँ.अगर फलित शत प्रतिशत सही हों तो उसे विज्ञान माना जाना चाहिए...अगर साठ प्रतिशत से अधिक सही हों तो उसमे वैज्ञानिक तथ्यों को खोजने के प्रयास किये जाने चाहिए और अगर सामान्य प्रायिकता औसत से कम सही हो तो हमें इस विज्ञान मानने से साफ़ इनकार कर देना चाहिए.
मेरे अनुभव से फलित सत्तर प्रतिशत तक सही रहा है...तो मैंने इसमें वैज्ञानिक सिद्धांत खोजने के प्रयास किये है.और कभी निराश नहीं हुआ हूँ.
जब मनोविज्ञान में अवचेतन मन को अभी समझा नहीं जा सका है तो शायद परामनोविज्ञान अभी दूर की कौडी है.यह वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव मस्तिष्क में अरबों न्युरोंस है...और हम अपने दिमाग का बहुत छोटा हिस्सा ही उपयोग में ले पारहे है...पर नब्बे प्रतिशत अवचेतन के बारे में कोई जानकारी नहीं है.पर आर्श्चय जनक तथ्य यह है कि हम जितना मानव मस्तिष्क के बारे में खोज कर पाए है ठीक वही अनुपात में ब्रह्मांड की खोज कर पाए है.मानव की वैज्ञानिक खोजों के इतिहास में मस्तिष्क और ब्रह्मांड के रहस्य एक साथ अनावृत हो रहे है.शायद पिंड और ब्रह्मांड में यह अनूठा साम्य मानव की अनुसंधान और खोजों में बहुत कुछ करने की प्रेरणा देता रहेगा.
मैं इन प्रश्नों के उत्तर खोजते रहना चाहूँगा...और जो खोज पाऊं उसे दुनिया के सामने रख कर शेष प्रश्न अगली पीढी के लिए छोड़ जाऊँगा जैसे कि मानव प्रजाति की हजारो पीढियां पिछले पचास हजार वर्षों से करती आई है.
और अब एक प्रश्न-
जन्म कुंडली के लिए जन्म समय क्या माना जाए.जब बालक गर्भ से बाहर आए या जब बालक माँ के पेट में हरकत करना आरम्भ करदे.या नाला काटे समय या कोई और समय?
इसको समझने के लिए यह समझना होगा कि बालक में चेतना का संचार माँ के गर्भ में शायद छठे माह से हो जाता है जब उसकी हरकते माँ को पेट में महसूस होने लगती है.तो फिर जन्म समय की प्रासंगिकता पर गौर करना जरूरी हो जाता है.
जब बालक गर्भ से बाहर आता है तो सबसे महत्वपूर्ण घटना यह होती है कि वह माँ से अपना नाता तोड़ता है और जिन्दा रहने का प्रयास करते हुए रोकर अपनी पहली सांस लेता है और इसके साथ एक और महत्वपूर्ण बात होती है उसके अवचेतन के साथ साथ एक चेतन मस्तिष्क क्रियाशील होता है जिसके सहारे वह इस संसार में अपना जीवन जियेगा.चेतन मस्तिष्क का क्रियाशील होना या बालक की पहली सांस लेना या रोना वह समय है जिसे सही जन्म समय मान कर जन्म कुंडली का निर्माण किया जाना चाहिए.
उस समय ब्रह्मांड की पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति से जिस समय बिंदु का निर्माण होता है वही उस बालक का संसार या ब्रह्मांड होता है अपना एक अलग ब्रह्मांड.उसका अपना समयाकाश.वह उसके जीवन को सदा प्रभावित करता रहेगा.